कोई वादा तो नहीं तुझसे, पर तू आज भी अपना सा है,
क्यों तेरी जुदाई का, मेरे ग़म से कोई रिश्ता सा है ।
हर शह ज़माने में बदलती है, हर नज़र बहकती है,
एक पल का था दीदार, और आँखों में तेरा चेहरा सा है ।
महफिलों में गम है तू, और अपनों में मसरूर है,
क्या बात है की खामोश है , क्यों तू तन्हा सा है ।
कभी मरासिम थे हमसे तुम्हारे, आज ताल्लुक भी नहीं,
दिल से धड़कन कैसे ये कहे, की तू मुझसे जुदा सा है ।
सारी खुदाई थी एक तरफ, और खुदा तुझको माना था मैंने,
खता की ये की न समझा मैंने, तू भी एक इन्सां सा है ।
आज चांदनी खामोश है, और चाँद भी कुछ गुमसुम है,
देख ले कायनात में, किस कदर मुक़म्मल मेरा ज़ज्बा सा है ।
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